संज्ञा

रिश्तेदारों ने मुझे “पत्थर” की संज्ञा दे दी है,
मैं दुपट्टों से बंधे रिश्ते तक तोड़ जाता हूं !
दोस्तों ने मुझे “कीचड़” की संज्ञा दे दी है,
के मैं दिलों पे धब्बे छोड़ जाता हूं !!
दुश्मनों ने मुझे “मिट्टी” की संज्ञा दे दी है,
गिलों को दफ़न कर खुद पे ही कफ़न ओढ़ जाता हूं !!!

आ रहा हूं या जा रहा हूं, पता नहीं,
जिधर दिखती है राह उधर ज़िंदगी मोड़ जाता हूं !
मुझे नहीं पता मैं क्या हूं,
कोई अक्षर मिलता है, मैं बस कहानी जोड़ जाता हूं !!

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