अंदाज़ा

गूँथे हुए आटे से सनी उंगलिओं से,
हटा देती है चेहरे से लट, बेदर्दी से !
जैसे हटा दिया था मीत उस माँग से,
जो भरी थी सुरख आंखों के चश्मों से !!

उसे अंदाज़ा ही नहीं, उस ज़ुलफ को कितनी थी चाहत उसके रुखसार से !!

पूरा

मेरी गुमशुदा रातों से पीछे छूट गया था जो,
सुबह की बासी सांसों सा इक ख्वाब,
छोड़ जाता है ज़िद से भी ताज़ा-दम इक अरमान !

आधा मैं, बाकी तुम,
क्या तुम पूरा करोगे मुझे ?

नाम

मैं दूर हूं तो वो भी कहां नज़दीकीओं से जुड़ा है,
वो हर वस्सल के बाद हिजर निभाता तो है !
बेशक वो नहीं करता मुसलसल याद मुझे,
कभी कभी मेरा नाम लिख के मिटाता तो है !!

रूई

रूई के गुबारे से दिखने वाले बादलों को गौर से देखना,
सैलाब दिखेगा तुम्हें !
मेरा खून गरम ना सही, मेरी आखों में ज़िद देखना,
पंजाब दिखेगा तुम्हें !!

मोहताज़

माथे की शिकन में रख ली हैं यादें,
और हाथों की लकीरों में छुपा लिए सब अरमान !
उसका चूमना और तुम्हारे आंसू,
बस मोहताज़ हैं तुम्हारे बदन के !

ओ झल्ली, तुम्हारे प्यार के काबिल कोई तो होगा…

सीप

ज़हीन सी ज़िंदगी में पिरो लिए कितने आंसू,
और पूछती हो ज़िंदगी क्यों आसान नहीं !
जाना, मगर, आसान तो सिर्फ़ मुस्कुराना होता है,
ज़िंदगियाँ बीत जाती हैं उसका सीप ढूंढने में !!

उम्र

दुबला सा लड़का जब हालात से हार मान लेता था,
तो वो लड़की उसे बाहों में ले के समझाती थी,
के कितनी मोहब्बत है उगते हुए सूरज को उससे !
अब उसे याद नहीं आता, उसे हो गयी मोहब्बत कब से,
डूबते हुए सूरज से !
बूझो के विछोड़े की उम्र कितनी लंबी है !!


उगता सूरज आज भी इंतज़ार में, किसी अपने की...
सुबह मगर होती आ रही है बेधड़क !
और लड़की की बाहें भरी रहती हैं मोतिओं से !!

ज़िंदा

आंतक, घुसपैठ, ब्लातकार, भ्रष्टाचार…
क़ौम पे कौन सी झरीट बाकी है !
नस नस में अभी से समा रहा है पानी,
क्या कुछ खून बाकी है?
बादल गरजा है और बिजली चमकी है,
बारिश तो अभी बरसनी बाकी है !

मजबूरी

उससे सुनती थी किस्से, कहानियां और कविताएं,
अब कालिख हुए दिल से स्याही धोया करती है !
कश्ती एक, बाहों के घाट पे किनारे लगती थी,
अब आँसुओं के समंदर में खुद को डुबोया करती है !

एक एक रात वस्सल की जोड़ी थी उसने मिल्कियत,
अब एक एक शब हिजर को खोया करती है !
कोयल ने अंडे तो दे दिए कौए के घोंसले में,
पर रोज़ शाम दूर से उन्हें देख रोया करती है !

दुपट्टे पे सजाती थी वो अरमानों के सितारे,
अब सांझ के ख्यालों से चुन्नी भिगोया करती है !
किताब जो खुद उठ के चिराग जला जाती थी,
आज अपनी ही जिल्द में छुप, तन्हा सोया करती है !

आईनों से उलझाती रही वो चेहरे की चांदनी,
अब झील के पानी में चांद बोया करती है !
कली, रात से निचोड़ लेती थी चाशनी, ग़ज़ल बुनने के लिए,
वो कांटों में शबनम को अब पिरोया करती है !


ये ना कह, यारा, वो है ही नहीं,
वो आज भी तेरे गीतों में समोया करती है !

बंधन

तुम मिलोगी भी, तो यक़ीनन फिर विछुड़ जाओगे !
ये ज़िंदगी फिलहाल इस कशमकश से बंधी है,
कोई मिल गया था, या कोई खो गया है !

आधी अधूरी

रख के हाथ मेरे रुखसार पे,
तुमने दुआ थी के मुझे भी कोई मिलेगा !
यारा, मोहब्बत नहीं तो दुआ ही पूरी की होती,
के अब, कोई मिलता भी है तो मेरा बनता नहीं है !!

लड़ाई

कोई रोता रहे कई लम्हे, मेरा चेहरा अपने आँचल में लिए,
और कह दे के मैं सारी की सारी हूँ तुम्हारी !
हाए, ज़िंदगी मुकम्मल होना भी बड़ा आसान है !!

पर, मालूम नहीं के वो लटें इतनी शरारती हैं,
या मेरी साँसों की लड़ाई है कोई बड़ी बड़ी आखों से !
जो ज़िंदगी उस बेमाने से मोड़ पे आ के रह जाती ही अधूरी !!

संक्षेप

सेंक दे अपने हाथों से इक निवाला,
भूख के लिए !
और इक कतरा रख लेना अपनी आखों में,
प्यास के लिए !

क्या जो मैने कहा, वो तुमने सुना !
देखना कहीं ज़िंदगी छोटी ना रह जाए,
मुलाकात के लिए !!

मुखौटा

मैं ढूंडता हूं हंसी अपनी,
दूसरों के चेहरे में !
और बन जाता हूं वैसा ही,
जैसे के सामने वाले की निगाहें देखती हैं !

सच ये है के,
हंसी एक 'extinct species' हो गयी है !

और मैं रह गया हूँ बन के इक मुखौटा !!

ਵਕ਼ਤ

ਕਿੱਕਰਾਂ ਦੇ ਸੱਕ ਲਭੇ ਸਨ,
ਮੈਂ ਲਾਚਿਆਂ ਮੰਨ ਕੇ ਚੁਗ ਲੇ ਨੇ !
ਉਸ ਕੰਜਰੀ ਬਣ ਬਣ ਔੜ ਹੰਢਾਈਆਂ,
ਹੁਣ ਵਕ਼ਤ ਹੂਰਾਂ ਦੇ ਪੁੱਗ ਲੇ ਨੇ !!

मध्यांतर

ये मध्यांतर है,
यहां कहानी तोड़ देती है अपनी रफ़्तार !
आभास होता है मझधार का !
और अस्तित्व होता है सिर्फ़ इंतज़ार का !!

सांझ

तुमसे मिलूं तो तेरे साथ,
दुनिया से जुदा होने का जी करता है !
तेरी नज़दीकी मिले तो ले के कहीं,
दूर चले जाने का जी करता है !

मैं आ गया दूर मगर, यारा, तुम अधरस्ते कहां छूट गये !
छोड़ गये जो चुन्नी का सिरा मेरे हाथों में,
उसे ओड़ के अब यहीं सो जाने का जी करता है !!


परिंदे चले वापिस मुकामों पे, मुझे वापिसी का रास्ता भी तो नहीं पता...

शाम करारी

मेरी अदरक के स्वाद वाली चाए में,
तू शहद वाली अपनी उंगली घुमा दे !
इतना काफ़ी है इस लम्हे के लिए के शाम पहेले से करारी है !!

बदलाव

तुम्हारी फुलकारी के पक्के रंग,
भी फीके पड़ गये होंगे अब तक !
वक़्त की फुहारों में मरहम हो ना हो,
बदलाव ज़रूर होता है !!

पत्थर

सबको एक पत्थर चाहिए होता है पूजा करने के लिए,
मैने भी रखा है इक पत्थर सीने में,
जिसमे से कटाव होता रहता है दर्द का,
जो एक प्रेम नाम की नदी अपने में बहा ले जाती है,
और घोल देती है सब विछोड़े नाम के समंदर में !


इस समंदर की गहराई नापने जाओगे तो डूब जाओगे, यारा !!