मैं ढूंडता हूं हंसी अपनी,
दूसरों के चेहरे में !
और बन जाता हूं वैसा ही,
जैसे के सामने वाले की निगाहें देखती हैं !
सच ये है के,
हंसी एक 'extinct species' हो गयी है !
दूसरों के चेहरे में !
और बन जाता हूं वैसा ही,
जैसे के सामने वाले की निगाहें देखती हैं !
सच ये है के,
हंसी एक 'extinct species' हो गयी है !
और मैं रह गया हूँ बन के इक मुखौटा !!
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