अंदाज़ा

गूँथे हुए आटे से सनी उंगलिओं से,
हटा देती है चेहरे से लट, बेदर्दी से !
जैसे हटा दिया था मीत उस माँग से,
जो भरी थी सुरख आंखों के चश्मों से !!

उसे अंदाज़ा ही नहीं, उस ज़ुलफ को कितनी थी चाहत उसके रुखसार से !!

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