सांझ

तुमसे मिलूं तो तेरे साथ,
दुनिया से जुदा होने का जी करता है !
तेरी नज़दीकी मिले तो ले के कहीं,
दूर चले जाने का जी करता है !

मैं आ गया दूर मगर, यारा, तुम अधरस्ते कहां छूट गये !
छोड़ गये जो चुन्नी का सिरा मेरे हाथों में,
उसे ओड़ के अब यहीं सो जाने का जी करता है !!


परिंदे चले वापिस मुकामों पे, मुझे वापिसी का रास्ता भी तो नहीं पता...

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