रूखी सी

मैं जानती हूं के तुमने रखी हैं
अपनी मीठी मीठी बातें किसी और के लिए !
और मेरे हिस्से बची है बे-रूखी सारी !

जानते हो बरसों के भूखे के लिए क्या होता है,
रूखी सुखी रोटी का इक निवाला !!

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