किस्मत की भी अपनी महत्वकांशा रहती है शायद,
मैं जब भी उठता हूं, फिर फिसल जाता हूं किसी के नयनों के घाट पे !
मैं जब भी उठता हूं, फिर फिसल जाता हूं किसी के नयनों के घाट पे !
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Sunday, 14 June 2015 at 08:36
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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