शक्कर के दो दाने हैं,
जो तेरे हाथ में थे !
इलायची का दाना भी है,
जो मेरे हाथ में था !
और महीन सा अदरक का तीखा,
जो उधार लिया था समंदर के किनारे रेत से !
पर इसमे तुम्हारी आखों के किए वादे नहीं हैं,
जो चाय मैं पी गया पहली बारिश की गीली मिट्टी की खुश्बू के साथ !!
शायद वो वादे विस्की के प्याले में मिल जाएं, किसी ओर शाम !!
जो तेरे हाथ में थे !
इलायची का दाना भी है,
जो मेरे हाथ में था !
और महीन सा अदरक का तीखा,
जो उधार लिया था समंदर के किनारे रेत से !
पर इसमे तुम्हारी आखों के किए वादे नहीं हैं,
जो चाय मैं पी गया पहली बारिश की गीली मिट्टी की खुश्बू के साथ !!
शायद वो वादे विस्की के प्याले में मिल जाएं, किसी ओर शाम !!
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