neat

हथेलिओं में कुछ नहीं रह जाता,
और ना ही किसी पे कुछ हक़ होता है !
किसी को तो किताबों में रखे सूखे फूल भी नहीं मिलते,
और किसी को सफ़ा भी नहीं मिलता जहां शुरुआत हुई थी !

कहीं खत भूल जाते हैं अपना ही पता,
और कहीं दुआ लौट जाती है बिन फुसफुसाए !
बचती है तो माथे पे इक भद्दी सी लकीर,
जो हाथ की एक खूबसूरत लकीर को चुरा कर बनी थी !

कोई भी समा बाँध नहीं पाता,
हाथ में पकड़ी ये neat भी नहीं !!

आगाज़

सोचो, किसने सोचा है कभी दिल लगाने से पहेले !
यारा, मोमबत्तियां कहां टपकती हैं, जलने से पहेले !!

अंज़ाम-ए-इश्क़ का फ़ैसला हो जाता आगाज़-ए-इश्क़ पे ही !!

कतरा कतरा

यारा सोचो कैसे कोई काग़ज़ों पे स्याह दाग लगा के
धोता है सीने पे लगे दाग !
सावन में कभी निचोड़ना सब काग़ज़,
ज़िंदगी कतरा कतरा बन टपकेगी !!

रहा सहा

पहली दफ़ा 'love at first sight' ना होना,
और आख़िरी दफ़ा भी नज़रें चुरा लेना,
सब बातें हैं मन में दबी हुईं ...

किसी के जाने से ज़्यादा सताता है किसी के पास कुछ रह जाना !
एक बार तो मैं मान लेता हूं,
ज़िंदगी निभ जाएगी उस सब के बिना जो रह गया !
फिर सोचता हूं,
क्या ज़िंदगी निभ जाएगी उस सब के बिना जो रह गया ?

कुछ रहा सहा, मगर, है, थोड़ा सा, अभी भी !!

अर्ज़ी

इक अर्ज़ी जो बन बैठती है आखों में,
हर सुबह ख्वाबों के धुआं होते ही,
वो एक एक शब्द जाया होती है,
दिन की घड़ीओं के साथ साथ !
अर्ज़ी में दरखास्त है, फसाना है, ज़ख़्म नहीं !
अर्ज़ी में सकूँ है, जनून नहीं !


अर्ज़ी में तुम्हारा नाम नहीं !!

झरोखे

ये झरोखा झँकता है मेरी आखों में,
तुम्हारी रुखसती की याद के साथ !
जहाँ से तुम खड़ी हो के दुनिया निहारती थी,
उसमे अब दूर फलक तक नहीं दिखता,
अब बस तुम्हारी यादों का आईना सा बन गया है वहां !
ये झरोखा झँकता है मेरी आखों में,
तुम्हारी आमद के सवाल के साथ !
उसकी चोगाठ पर निशान तेरे हाथों की मेहंदी के,
इस सावन धूल तो गये,
मगर खुश्बू नहीं गयी !


ये झरोखा झँकता है मेरी आखों में,
सवाल बन के या याद बन के !!

रुखसती

कोई रुखसती के वक़्त रख लेता है सब आंसू,
एक संदूकड़ी में दिल की परछत्ती पर !
समंदर किनारे हर शाम,
लहरों के ज़ोर से तोलता है आँसुओ की शिद्दत !
और फिर संभाल के रख देता है वापिस,
आने वाली कई शामों के लिए !


बोलो, कभी तुमने देखा मेरा कोई आंसू ?

झल्ला

एक एहसास के जो निगाहें तकती हैं मुझे,
वो टोह भी देखती हैं किसी का !
एक नतीजा के तुमने मेरा प्यार खोया,
और अपना प्यार भी ना पाया !

इन सबसे परे वो तेरा मुझे झल्ला कहना !!

खत

कोई बरसों मलहम लगाता रहता है,
लिफाफों में लपेटे उन ज़ख़्मों को,
जो उसने कुछ लम्हों के दायरे में,
बांध दिए थे खत की एक कन्नी से !

और दूसरी कन्नी से झर झर बहता हुआ एक आंसू !!

खुश्बू

के पग पग उम्र लांघ रही है,
क्यारीओं से गुलिस्ताँ की !
ज़िंदगी रोज़ नयी खुश्बू चुराती है,
और सज़ा लेती है अपने गुलदस्ते में !

बहरहाल, गुलदस्ता मुकम्मल है सिवाए तुम्हारी खुश्बू के !!

सितारे

उड़ा दे फूंक से बादल,
और तोड़ के सितारे अपनी चुन्नी से सज़ा दे आसमान में !
आज सावन भीगी रात की नहीं,
यारा, तेरे आंचल की ख्वाहिश बसी है पागल मन में !!

कन्नी

देखो, फिर, हिलोरे खाती ज़िंदगी कट चली,
दुनिया के उपर नीले आसमान में !
और फिर, दौड़ा एक बचपना उसे लूटने,
हाथ में ले के इशक़े का मांझा,
तीखा किया था जो इंतज़ार के कांच से !


फिर, रुख़ बदल लिया ज़िंदगी ने मेरी दौड़ से परे,
कन्नी एक दे दी थी तूने अपनी छूहन की !!

इतेफ़ाक

वो मुंह पे रख लेती है हाथ जब हँसती है,
जैसे डर हो कोई छीन लेगा जो मिला है किस्मत के कोई इतेफ़ाक़ से !
और वो क़ैद कर लेता है वो हँसी ज़हन में उसके ढंकने से पहेले,
जैसे फिर मिलना मुश्किल होगा जो मिला है किस्मत के कोई इतेफ़ाक़ से !!

भटकन

इस बार वैसी तेज़ धार वाली बारिश की बूंदें नहीं थी !
ना ही देर रात तक रोते पत्ते !
ना भीगी हवा के थपेड़े !
ना ही खराशों से भरा आसमान !

यूं उदास कुछ भी नहीं था,
फिर भी उदासी थी !

कहीं, ज़हन में, भटकन के साथ साथ !!

हालात

मैने रोशणीओं को फेंका था खिड़की से बाहर आज,
मगर बाहर का अंधेरा अंदर चला आया !
तन्हा रहने की चाहत हालातों से हार जाती है अक्सर !!

अरसा

मैं रुका रहा एक अरसा कढ़ी धूप में,
के छाँव बैठी रही किसी पेड़ किनारे !
मेरे ही इंतज़ार में !!

हद

गर बढ़ जाऊं हदों से,
तो थाम लेना मुझे !
थोड़ी कम ज़्यादा,
हो जाती है याद भी कभी कभी !!

friendship

याद है हमारी पहली काग़ज़ की कश्ती,
कैसे बारिश के थपेड़ों से जूझती,
धार के उस पार लग ही गयी थी !
और उसी खेल को खेल खेल में,
हमने दे दिया था friendship का नाम !

मोहब्बत को मंज़िलें मिलें ना मिलें,
दोस्ती को रास्ता मिल ही जाता है !!




खुशकिस्मती है, दोस्ती का सिर्फ़ राह होता है, मंज़िलें नहीं !

बैर

मायूसीओं ने कर ली है पैरों से दोस्ती,
थोड़ा दूर था, ओर दूर होता रहा हूं !
किस्मत ने दे दिया है मजबूत कांधा,
नज़दीकीओं का बैर ढोता रहा हूं !
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पता नहीं क्यों मैं हर बार खुद को दूर ही पाता हूं,
हसरतों और खवाबों में जो गहरा अंतर है, ना समझो तो ही अच्छा...

शाखाएं

ज़िंदगी के पीपल से रोज़ फुन्टते दिन,
अब शाखाएं बन गयी हैं, उम्र की !
जिनपे पत्ते खड़खड़ाते हैं, यादों के
ऐसी ही शाम जब हवा तेज़ चलती है !!
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और कोई नहीं होता आस पास,
यारा, मेरी बाहों में सकूँ रखा है तुम्हारे लिए !