कुछ JNU, TISS, HCU बनाने में लगे हैं, कुछ UPA, NDA बनाने में लगे हैं...
कुछ election का टिकेट जुगाड़ने में लगे हैं, तो कुछ TRP बढ़ाने में लगे हैं...
कुछ सरहद पे मर मिटने को तैयार हैं, तो कुछ अंदर मारने मिटाने को तैयार हैं...
कुछ अन्न उपजाने को संघर्ष कर रहे हैं, तो कुछ टेबल पर काग़ज़ सरका टेबल के नीचे पैसा बना रहे हैं...
बाकी जो बच गये ना तेरे मेरे जैसे, यारा, कल फिर टपरी पे खड़े सोचेंगे इन सबके बारे में
|| टपरी पे चाय ||
टपरी पे सिर्फ़ चाय नहीं होती !
कुछ शक्कर सी नज़दीकियां भी होती हैं,
तो बिस्किट के साथ साथ कुछ यादें भी डुबोई होती हैं !
गरम भाप के साथ मन की कुछ भढ़ास भी होती है,
और कुछ अदर्क सी तीखी बातें भी होती हैं !
कुछ छाननी जैसे खवाब भी बुन ले जाते हैं,
तो कुछ काँच से टूट के खुद को चुभ भी जाते हैं !
कभी कीमाम की खुश्बू सी ज़िंदगी भर की याद भी बन जाती है,
कभी सुट्टे जैसे ज़िंदगी भर की लगाई भी गले पड़ जाती है !
सब होता है,
बस टपरिओं पे लाल या हरा या भगवा रंग नहीं होता...