30 something

In a few days I will be on wrong side of 30. While there is no dearth of sage advices in the form of “30 things to do before you turn 30”s and I believe I have read almost all of those, thanks to diverse friend list on facebook with exaggerated sense of their own identity. The only problem is you cannot complete the bucket list when there is only a month to go and when you are younger you really don’t consider age threshold for what you are doing.

Unbelievably, almost all those advices focus around being married, not being married, falling in love, traveling, finding right job, friends, education, health etc. It’s unbelievable because these are all the things which are anyway part of any regular person’s life be it before thirty or after thirty.

I, for my part, had a life which only few could boast of. A lot of travel, lot of friends, a remarkable education, fulfilling jobs, nurtured my hobbies, have fallen in love, have been loved etc. etc. But the catch is, it is still incomplete; it always will be. It’s amazing, if you see, life is like a bottomless glass; it never spills as much as you try to fill it. There is always something incomplete or something new to be done.

Every clichéd story that you ever hear in your lifetime has only one summary: “To be happy find someone or something you love and be with one (do that thing) for the rest of your life”. The only problem is being ready. Being ready for the moment when it arrives!

The thing I really seem to be saying is that no one really can plan their lives; which is very trivial thing to say but escapes almost every one of us. We can only ponder about past and future in the form of nostalgia and dreams respectively. But the only thing I have realized till now is life is in present. Always has been!

सीढ़िआं

ठंडी रातों में वो,
सीढ़िओं पे महफिलें सज़ा लेता था,
कुछ उपर जाते जाते शामिल हो जाते,
कुछ नीचे उतरते शामिल हो जाते !

बढ़े कोहरे जब सब,
अपने अपने संसार लौट जाते,
वो उन्हीं सीढ़िओं से,
अपने संसार का असबाब समेट लेता,
फिर अगली रात सजाने के लिए !!

नदी के मुहानों पे

सब ख्वाबों में रंज भर गया,
मेरी नींद थी, उसको लाश कर गया !
कोरे काग़ज़ों में स्याहियां भर गया,
सुनहरी धूप सी थी, जिसको चाँदनी कर गया !
खटास यादों से ज़्यादा एहसासों में भर गया,
शहद में उंगली डाली, तो कड़वा कर गया !


वो तो, यारा, किनारों से ऊब गया,
मगर देखो, नदी के मुहानों पे समंदर डूब गया !!

startup waale

ek zamana tha jab gali ke laundo ka ishq doctors/engineers/MBAs uda le jaate the...
aaj kal doctors/engineers/MBAs ka ishq startup waale uda le jate hain...

छूना

तेरी नींदों को मेरी क़रवटों ने छू दिया था,
तकदीरें बदल गयीं !

तेरे होंठों के तिन को मेरी हथेलिओं ने छू दिया था,
लकीरें बदल गयीं !!

साँसें

साँसें धीरे धीरे लेने की आदत डाल लो,
बची साँसों को बचा के ही रखना !

मरते वक़्त किसी ग़रीब के काम आ जाएंगी,
गर ज़िंदगी कुछ बाकी रही तो खुद के काम आ जाएंगी!

until you are proud

Don't stop until you are proud

weight by weight you break (sweat)
brick by brick you build (muscle)
inch by inch you move (ahead)

रेत का टीला

ज़िंदगी के पत्थर पे लहरों की चोट !
और सब यादें, रेत का टीला, बनते बिखरते...

तबाही

सारी दोस्तियाँ मॅगी की प्लेट !
सारी मोहब्बतें चाए की प्याली !
सारी तबाही 'on the rocks' ग्लास !

कम्मांडो

इतनी मुश्किलें सीधे से इश्क़ में,
कड़वी घूँट भी लगती हैं मीठी...
.
याद आता है इक यार का कहना, "मुश्किल वक़्त तो कम्मांडो सख़्त"
यहाँ, मगर, ज़िंदगी खुद माँग रही है शहादत

मामूली

मोहब्बत कितनी मामूली,
कुछ भूल जाते हैं, कुछ याद नहीं करते...

जेबें

आज जेबें फाड़ दी मैने सब,
इनका कोई मकसद नहीं बचा था !
मेरा जो था सब तुम ले गये,
ये जेबें भी ले जाओ !

बेमानी हैं अब मेरे लिए !!
पता मुझे पहले से था, एहसास अब हुआ है !!

पीछे

सब जी ही जाते हैं अपनी अपनी ज़िंदगियाँ !
मगर कुछ पीछे छोड़ जाते हैं इक अधूरापन,
वो जो ढूंढ नहीं पाते रोने के लिए कांधा !!

मीआद

वो उस दिन सब प्यार खो बैठी - उसके किए भी, उससे किए भी ! भीड़ में किसी के मोबाइल फ़ोन पे धुन बज रही थी - "तेरा मुझसे है पहेले का नाता कोई" | मधम होती हुई; जैसे बॅकग्राउंड म्यूज़िक हो कहानी की समापती का |
जाते जाते फिर दोनो पलटे नहीं... शायद किसी डर से !
अजीब है ना कुछ कहानियां कितनी छोटी होती हैं शब्दों में, मगर मीआद उम्र भर की !

तीखी मिर्ची

और हो जाती है देरी काफ़ी, खड़े खड़े,
तुम्हे रोकने को शब्द फिर भी नहीं मिलते !
थक जाती हैं आखें इंतज़ार में,
के कोई पलट आएगा कभी भी !

यूं तो मिलती नहीं, मगर जब भी मिलती है ज़िंदगी तो ऐसे,
जैसे तीखी मिर्ची पे चढ़ा हो सोने का वरक !!

पीठ

समंदर को ताकते रहने से मिलती हैं सिर्फ़ तन्हाई,
ज़िंदगी चाहिए तो समंदर की तरफ पीठ रखना !

समंदर की तहों में रहते हैं सीप, निशानियाँ नहीं !!

Being ready

Every clichéd story that you ever hear in your lifetime has only one summary: “To be happy find someone or something you love and be with one (do that thing) for the rest of your life”.
The only problem is being ready. Being ready for the moment when it arrives!

तैयारी

सबसे बुरा इंतज़ार होता है खुद के तैयार होने का इंतज़ार| किसी को कुछ पाने के लिए तैयार होना, किसी से कुछ सुनने के लिए तैयार होना, कुछ करने के लिए तैयार होना, कुछ पाने के लिए तैयार होना !
आज भी हम दोनो तैयारी में जुटे हैं| मैं कहने की तैयारी में, वो सुनने की तैयारी में !

सीख

किसी की तन्हाई का सबब बन जाना और महफिलें सजाना,
सिखा जाना मुझे भी !
किसी की नींदे उड़ा देना और नींद में करवटें ना लेना,
सिखा जाना मुझे भी !
किसी को इंतज़ार दे जाना और पीछे पलट के ना देखना,
सिखा जाना मुझे भी !


वो सब सिखा जाना,
जो तुमने खुद ही सीख लिया मुझसे दूर रहने के लिए !!

स्टेंप पेपर

मेरे होठों पे तेरे माथे की लकीरों की मोहर सी...
हस्ताक्षर तेरी उंगलीओं के...
ज़िंदगी गिरवी स्टेंप पेपर पे तेरे नाम !

कला

किसी की तन्हाई का सबब बन जाना,
मुझे भी सिखा जाना !
या सिखा जाना,
ज़िंदा रहने की वो कला जो तुम्हारे बिना निभेगी !!

Life

Life is a forest. Once you are in, you cant remember from where did you get in...

बिखरे

हम दोनों ही बिखरते थे,
और सिमटते सिर्फ़ एक दूसरे से !
बिखराने वाले सब, समेटने वाले सिर्फ़ तुम !
ज़िंदगी को लगी है आदत तुम्हारी, ज़िंदगी भर के लिए !!

रवानगी

वापिस हटती लहरों से मोहब्बत मत करना,
लौटेंगी नहीं !
यूं लहरें आती रहेंगी कई !

बेवजह

ज़िंदगी क्या कल दिखाएगी
ज़िंदगी कल क्या दिखाएगी
बातें बेवजह…

ज़िंदगी गुज़र रही है मुझसे
मैं गुज़र रहा हूं ज़िंदगी से
सोच बेवजह…

लड़ाई

ज़िंदगी से हारना नहीं!
ख्वाबों को देखने वाली आँखें,
लड़ती तो आईनों से ही हैं !!

लहरों से डरना नहीं !
पानीओं में रहने वाली कश्तिआं,
चलती तो हवाओं से ही हैं !!

तन्हा रात

झींगुरों की आवाज़ें हैं शहनाईओं की तरह !
जुगनू टिमटिमाते हैं रोशनीओं की तरह !
झील में कहकशां महफ़िलों की तरह !
रात तन्हा मगर...

हार

कितना हारा हूं मैं,
के मुझको ही नहीं मालूम,
के दाव क्या लगाया था !
उसका लगाया था जो मेरा था नहीं,
या उसपे लगाया था जो मेरा बन ना सका !!

साधारण सा सवाल

डर इस बात का नहीं होता के कुछ खो जाएगा !
मगर इस बात का के तमाम ज़िंदगी गुज़रने के बाद
मन में सवाल रह जाए के क्या पाया !!

और असल सवाल का डर नहीं, बस बेबसी होती है जवाब ना होने की !
सवाल ये नहीं होता के तुमसे मिलन का नतीजा क्या होगा !
सवाल ये भी नहीं के तुम गर मिलोगी भी, तो कहां मिलोगी !


सवाल बड़ा साधारण सा है,
के जो रास्ते चुने हैं मैने, क्या वो कभी जुड़ेंगे वहां जहां तुम हो !!

सच्च

बाकी सब झूठ है, फीका है, बेरंग है,
सच सिर्फ़ इतना जो उसने खाँचो में भरा था, अपने दिल के कोनों के !
जैसे आकाश का आसमानी रंग झूठा, मगर उदास काले बादल सच्चे !!

थमे लम्हे

यूं आज पहली बार हुआ के तेरी आंखों का चांद अलसाया सा,
करवटें लेने लगा बरसों की मेरी आंखों की जगी रातों में !
आज बांट लेते हैं चांदनी आधी आधी,
और इस लम्हे के बाद कहीं छुपा लेंगे जेबों में अगली तारीख तक !

फिर किसी रात दोनो आध जोड़ के सज़ा लेंगे आने वाली सब रातें !!

खरीद

जो खरीदा था,
या जो नहीं बेचा था,
इस दुनिया से परे !
कुछ बचा होगा, कुछ तो बचा होगा !!

बंटवारा

सारा अधूरापन लिए हुए अपने आँसुओं में,
पोंछ दिया तुमने, जो था तेरे मेरे बीच...
मेरा सारा जहां...
जिसमे आधे तुम आधा मैं...
.
सोचो के बंटवारा पहेले से लिखा था तकदिरों में

वो रात

रोशनीओं से अलहदा चांद भी भटका था,
कभी बादलों के पीछे,
चेहरा छुपाए !
उस लम्हे में कुछ अधूरा नहीं था,
मैं और तुम पूरे इक दूसरे से !!

मोम

ये दिल आईने सा है, इसे मोम बना लेना !
फिर बस पिघलेगा मगर टूटेगा नहीं
बाहर की परछाईओं को अंदर की तपिश से जला देना !!

आस

मोहब्बत के पेड़ ऊंचे होते हैं !
उनकी शाखाएँ तो नहीं होतीं,
मगर जड़ें दूर दूर तक फैलती हैं, ज़िंदगी में धंसी !
बहरहाल, ज़िंदगी की कहानी इस आस में के,
कभी उस पेड़ से गुल्मोहर के फूल झड़ेंगे !!

सुबह

वो हर बार सपने पे उंगली रख देती थी,
मैं हर बार करवट ले लेता था !
तब जगा जाता था,
सुनहरी रोटी पे चांदी सा मख्खन,
या फिर लोहे के चमच में चांदी सी खीर !

अब बस ख्वाबों में चुभ जाती है सुबह !!

नन्हीं सी बातें

तेरा मेरे बालों में गालों को रगड़ जाना,
या मेरा कंधे पे हाथ रखते रखते गालों पे हाथ रख जाना !
तेरा चलते चलते कलाई से कलाई सरका जाना,
या फिर मेरा गले लगते लगते बाहों में लिपट जाना ! 

जो सब नन्हीं सी बातें होतीं हैं, वो सब मोहब्बत होतीं हैं !!

गुच्छा

वो गुल्मोहर के पेड़ के नीचे ढान्स लगाए मिली थी,
जैसे उस गुल्मोहर का ही कोई गुच्छा ज़मीं पे गिरा हो !
और वैसी की वैसी ही दूर छूट गयी !
फिर उसको किसी दिन देखा,
उसकी नयी ज़िंदगी के पहचान-पत्र के साथ !


लगा के सब फूल सूख गये,
मगर गुच्छा अभी भी बंधा हो किसी डोरी से !!

उंगलियां

बहुत बार गुम होने के बाद,
मैं पहुंचा हूं यहां तलक !
उंगलियां कब पकड़ी थीं, याद नहीं,
कदम सब अपने ही हैं,
देखते हैं, जाऊंगा कहां तलक !!

राह

जैसे चोटिओं पे बर्फ छटपटाती है समंदर में घुल जाने को,
मेरे होंठ भी तरसते हैं तेरा माथा चूमने को !
फरक इतना बस,
नदीओं के राह बड़े लंबे होते हैं और अपनी मोहब्बत के है ही नहीं !!

अमीरी

वो जाती हुई रो रही थी,
मुझे समझ नहीं आया मेरे लिए या मेरे हिस्से का !
मोहब्बत की परिभाषाएं अगर पेड़ों पे टॅंगी मिल जातीं तो,
सब अमीर ना हो जाते !! 


बहरहाल मुफ़लिसी ही मेरी मिल्कियत है...

खुशी

तू मुझे जान कहे और खुशी मेरी नाक पे फड़फड़ाती रहे !
मैं चूम लूं माथा तेरा और तू दिन भर शरमाती रहे !! 



चली आ कहीं से तो, के ये जो सब पूरा है, तुझ बिन अधूरा हो रह जाए...
कहीं से तो...

इल्ज़ाम

अपने नाम में से मेरा तखलुस हटा लेना,
चाँद पे इल्ज़ाम लगते हैं सितारों से उधारी लेने के !
चांदनी बिखरी है वहां से वहां तलक,
सितारों की छाओं है जहां से जहां तलक !!

किस्से

भूलना मत उसको, कितना भी हरजाई हो !
किस्से नहीं बनते मोहब्बतों के,
गर थोड़ी सी बेवफ़ाई ना हो !!

उलझनें

वो कोरे काग़ज़ों पे लिखता था,
और सफेद चादरों से उलझता था !
वो सिलवटों में उसका लिखा पढ़ती है,
और स्याहीओं से सब सुलझाती है !!

चिंगारी

मोम तो सब जलाते हैं, खुद को भी कभी जला कर तो देखो !
इतना मुश्किल है नहीं,
घर की बात ज़रा बाहर वालों को बता कर तो देखो !!

किनारे

मेरे इश्क़ के किनारे नहीं, बस रवानी है,
मेरे दिल को निचोड़ा बहुत, कभी अपने दिल को डूबा भी जाना !
नियत की बात नहीं, तकदीरों में बेईमानी है,
बहुत से क़र्ज़ लिए हैं तुमने, कुछ क़र्ज़ चुका भी जाना !

ताना-बाना

ये जो बाहर आतिशबाज़ी हो रही है,
या तो कोई चल बसा है या कोई ज़िंदगी सांस लेने लगी है !
मैने नहा धो के आज कपड़े सब नये पहने हैं,
मगर ज़िंदगी फिर पुराने धागों से ताना-बाना बुनने लगी है !

रिश्ता

तेरी नज़र से रु-ब-रू मेरी नज़र का गम ना हो,
बिछड़ने पे भी मुस्कुराएँगे ऐसी कोई कसम ना हो !
तू मिल तो सही मेरा यार बन के,
ये दुनिया अपना रिश्ता बदल दे ऐसा बस सितम ना हो !!

पत्थर

पत्थर ने समा रखा है मोम अपने अंदर,
पिघलता है पर टूटता नहीं !
उसे चिंता है बेवफा को सेंक लग जाने की,
वरना वो जलने से डरता नहीं !!

पैबंद

वो बोतल में बंद बूंद सा था,
तो जैसे पगली लड़की ने सीने पे दरिया बना लिया हो !
अपनी अमीरी में उसकी ग़रीबी को जगह दे दी,
जैसे किसी ने मखमल पे सूत का पैबंद लगा दिया हो !!

अफवाह

तुम तो रुखसार पे हथेलिओं से हमदर्दी दे जाते हो,
और पीछे छोड़ जाते हो इक गले लगाने की चाह !
सोचो, लोगों में फैल जाती है अपने मिलने की अफवाह !!

खिजां

खुश्बू उड़ती रही इन दीवारों में,
जैसे तितली फड़फड़ा रही हो तेरे कान्धे पे !
घटा बरसती रही छत के नीचे,
जैसे अठखेलियां खेले बादल तेरी ज़ुलफ के नीचे !
चहचहाते रहे पंछी पर्दों के धागों पे,
जैसे तेरे चेहरे पे उग आया हो सूरज कोई नया !
रंगों से खेलती रही चादरें,
जैसे रंग उड़ेले हों मेहंदी निचोड़ के तेरे हाथों ने!


बहार आई थी उस वस्सल की रात,
और फिर उम्र भर मौसम-ए-खिजां रहा !!

दखल

मैं अक्सर रात से बात करता हूं !
हां, हर शायर की तरह, मैं भी !!
सितारे सुनते हैं, मगर बोलते नहीं !
चाँद देखता है, मगर दूर से !
कोई दरमियाँ नहीं मेरे और रात की अंधेरी खला में !


आज कल, तेरी नज़रों के एक तिलस्म का दखल मेरी गुफ्तगूं में !!

तीशनगी

कोई चाहता है सिर्फ़ तुम्हारा साथ,
किसी को काफ़ी नहीं पूरी की पूरी तुम !
समंदर उछल पड़ता है मुठ्ठी भर चांदनी से,
आसमान खामोश सा पूरा चांद पा के भी !!

कमी

मैं था के नहीं तुम्हारे साथ,
जब तुम्हें सहारों की ज़रूरत थी !
मैं शामिल था या अलहदा,
जब तुम्हें महफ़िलों की कमी थी !

तेरा उंस और मेरी उलफत, दूरियां कम और नज़दीकियां ओर भी कम !!

करवट

ख्वाब की तह में रखी हुई याद आधी रात,
करवट लेते हुए बिस्तर की सिलवट के साथ खुलती है !
एक हवा का झोंका खिड़की के घूंघट को उड़ा,
फलक का मुखड़ा दिखा जाता है !
रात के रुख़ पे टपक गया हो आंसू जैसे चांद से,
सावन का एक बादल बिखरे से काजल सा चांद के ओर !
सब झीलें सो रही हैं धरती के आँचल पे,
कोई नहीं जो आगोश में ले ले रोते आसमान को !


कोई भी नहीं होता आस पास जो गले लगा ले मुझे,
आधी रात जब करवट लेते वक़्त मालूम होता है की आंख भीगी है !!

पन्ना

लड़का गमगीन था ! लड़की जानती थी, मगर वो चली आई | उसके आंसू पोंछने का हक़ किसी ओर का था, और वो थी खुद्दार !
बस! ज़िंदगी ने कहानी का पन्ना पलट लिया !!


कितना मुश्किल था गले से लिपट जाना,
के आसां हो गया जां का हलक में आ जाना !

शाहकार

हर रंग की किस्मत नहीं होती शाहकार बन जाने की,
मुसव्विर रहता है कोशिश में, तस्वीर को शीशा करने की !
दरिया को नहीं चाह होती समंदर से एक हो जाने की,
वो बेचारा लगा है होड़ में, समंदर को मीठा करने की !!

डूबना

इक दरिया के किनारे किनारे चलती ज़िंदगी को,
समंदर की तलाश से ज़्यादा,
डर रहता है खाड़ी में बँट जाने का !

पानी छोटा बड़ा नहीं होता, बस गहरा होता है !
और काफ़ी होता है डूब जाना !
ये सीखे हुए पैर, मुकाम नहीं राहें ढूंढते हैं !!

ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੰਦ ਬੋਤਲੇ

ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੰਦ ਬੋਤਲੇ ਕਿਧਰੇ ਭੁੱਲ ਗਈ ਤੈਨੂ ਦੁਨੀਆ ਨੀ,
ਤੇਰਾ ਸਵਾਦ ਮੁਹੱਬਤਾਂ ਵਾਲਾ, ਰੁਲ ਗਿਓਂ ਵਿਚ ਅਮੀਰੀਆਂ ਨੀ !!

ਤੇਰਾ ਛਨ੍ਨਾ ਲੱਸੀ ਵਾਲਾ ਬਣ ਗਿਓਂ ਪੇਗ ਵਿਲਾਅਤੀ ਨੀ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਪੰਜ ਪਾਣੀਆਂ ਚ ਮਿਲ ਗਿਆ ਖਾਰਾ ਸਮਂਦਰਾ ਵਾਲਾ ਨੀ !
ਤੇਰੇ ਰੰਗ ਸੁਨਹਰੇ ਉਡ ਗਏ ਨੇ ਕਣਕਾਂ ਦੀਆਂ ਪੈਲੀਆਂ ਚੋਂ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਠਾਠਾਂ ਮਾਰਦਾ ਰੰਗ ਕਾਲਿਖਾਂ, ਭੁੱਕੀ ਦੀ ਸੁਆਹ ਵਾਲਾ ਨੀ !
ਤੇਰੇ ਜੱਟਾਂ ਦੀਆਂ ਸ਼ੌਕੀਨੀਆਂ ਰੁਲ ਗਿਆਂ ਵਿਚ ਪਰਦੇਸਾਂ ਨੀ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਰਖਦੇ ਨੇ ਖੁੰਡੇ-ਗੰਡਾਸੇ ਚਾਕਰਾਂ ਲਈ, ਚੁੱਕਲੀ ਰੋਡ 'ਸੇਲਫੀਆਂ' ਵਾਲੀ ਨੀ !
ਤੇਰੇ ਛੱਲੇ, ਵਂਝਲੀ ਹੰਡਾਂ ਲਿਆਂ ਉਮਰਾਂ ਪ੍ਰੀਤ ਵਾਲਿਆਂ ਨੀ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਹੁਣ 'ਸ੍ਮਾਰਟਫੋਨਾ' ਤੇ ਇਸ਼੍ਕ਼ ਹੁੰਦਾ ਏ ਜਿਸ੍ਮਾ ਵਾਲਾ ਨੀ !
ਤੇਰੀ ਮੋਟਰਾਂ ਤੇ ਹੁਣ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ ਓ ਦੁਧ-ਮਿਠਾ ਪਾਣੀ ਨੀ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਕਿਆਰੀਆਂ ਚ ਛਿਟੇਂ 'ਕੇਮੀਕਲਾਂ' ਵਾਲੇ, ਤੇ ਨਸ਼ੇ ਲੌਨ ਤਾਰੀਆਂ ਨੀ !
ਤੇਰੀ ਜੁੱਤੀ ਚ ਓ ਨੌਕ ਨੀ ਰੈਗੀ, ਹੁਣ ਅੱਡੀ 'ਗੂਚੀ' ਵਾਲੀ ਨੀ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਬਣ ਬੈਠੀਓਂ ਯਾਰ ਭਾਂਬੀਰੀ ਔਡੀ, ਜੀਪ ਤੇ ਬੁਲਟਾਂ ਦੇ ਪਿਛੇ ਨੀ !
ਤੇਰੇ ਮੇਲੇਆਂ ਚ ਹੁਣ ਦਿਲਾਂ ਦੇ ਮੇਲ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਹੁਣ ਬਾਜ਼ਾਰੀਂ ਵਪਾਰ ਹੁੰਦੇ, ਕੱਲੇ ਰਹਿ ਗਾਏ ਜਰਗ, ਛੱਪਾਰ ਤੇ ਰਾਇਪੁਰ ਨੀ !
ਭਠੀਆਂ ਚੋਂ ਹੁਣ ਗੁੜ ਨਹੀਂ ਨਿਕਲਦਾ ਤੇ ਕੱਚੀ ਕਢਣੀ ਭੁਲਾਤੀ ਨੀ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਤੂ ਰੈਗੀ ਵਿਸਰੀ, ਤੇਰੀ ਜਗਾਹ ਲੈ ਲੀ ਵਿਲਾਅਤੀ ਨੀ !

ਗਰੀਬਾਂ ਦੇ ਤਾਂ ਅਖਤਿਆਰ ਹੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ,
ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੰਦ ਬੋਤਲੇ, ਤੂ ਰੁਲ ਗਿਓਂ ਵਿਚ ਅਮੀਰੀਆਂ ਨੀ !!

टीस

कोई भी नहीं है इस चार-दीवारी में,
जो सवाल करता हो !
खामोशियाँ फिर भी जवाब दे जाती हैं अब !
टीस, तन्हा, मगर चाह बंटने की !! 



ये कहानी बस इतनी सी !
बहरहाल कई कहानिओं की भूमिका है मेरे पास, मगर अंत नहीं !!

क़ैद

हज़ूम की जात नहीं होती,
बस मनसूबे होते हैं !
शख्स की पहचान नहीं होती,
बस ख्वाब होते हैं !

रेहाई की तलाश में सब, अपनी ही क़ैद से !!

चिठ्ठीओं से नाता

वो अक्सर आ के पूछती है सुनहरी धूप में,
बताओ ज़िंदगी कैसी चल रही है !
मुझे अक्सर एहसास होता है बूंदों की खड़खड़ाहट में,
ज़िंदगी वैसी की वैसी चल रही है !

लोगो से नाते टूट के चिठ्ठीओं से नाते जुड़ गये हैं, इसके अलावा कुछ भी तो नहीं बदला !!

living between the lines

"जो चाहिए वो मिलता नहीं, जो नहीं चाहिए वो मिल जाता है! बाकी जो बचता है वो ज़िंदगी है, प्रेम और रंजिश के महीन धागे में पिरोई हुई"
उसकी ज़िंदगी एक पन्ने पे करीने से इन्हीं लाइनों के बीच टॅंगी हुई है! जिन लाइनों से वो बचता रहा है उन्हीं लाइनों के साए में!
बहुत से तज़ुर्बात के बाद उसे ये समझ आई थी के प्रेम शब्दों में परिभाषित नहीं हो सकता और शायद इसी लिए उसने अपने लिए वो जगह चुनी यहां शब्द नहीं होते| मगर चाहना से बड़ी होती है हक़ीक़त | उन शब्दों से ज़्यादा अर्थ-पूरण और उसकी ज़िंदगी से ज़्यादा निरार्थक कुछ भी नहीं था|

मेरे अंदर का कवि उस दिन मर गया जिस दिन "reading between the lines" से "living between the lines" का सफ़र मुकम्मल हो गया| मगर कभी कभी ज़िंदगी मचल भी उठती है, लकीरों को तोड़…

ज़िंदा रहना एक मकसद होना है बस, और ज़िंदगी एक एहसास!

neat

हथेलिओं में कुछ नहीं रह जाता,
और ना ही किसी पे कुछ हक़ होता है !
किसी को तो किताबों में रखे सूखे फूल भी नहीं मिलते,
और किसी को सफ़ा भी नहीं मिलता जहां शुरुआत हुई थी !

कहीं खत भूल जाते हैं अपना ही पता,
और कहीं दुआ लौट जाती है बिन फुसफुसाए !
बचती है तो माथे पे इक भद्दी सी लकीर,
जो हाथ की एक खूबसूरत लकीर को चुरा कर बनी थी !

कोई भी समा बाँध नहीं पाता,
हाथ में पकड़ी ये neat भी नहीं !!

आगाज़

सोचो, किसने सोचा है कभी दिल लगाने से पहेले !
यारा, मोमबत्तियां कहां टपकती हैं, जलने से पहेले !!

अंज़ाम-ए-इश्क़ का फ़ैसला हो जाता आगाज़-ए-इश्क़ पे ही !!

कतरा कतरा

यारा सोचो कैसे कोई काग़ज़ों पे स्याह दाग लगा के
धोता है सीने पे लगे दाग !
सावन में कभी निचोड़ना सब काग़ज़,
ज़िंदगी कतरा कतरा बन टपकेगी !!

रहा सहा

पहली दफ़ा 'love at first sight' ना होना,
और आख़िरी दफ़ा भी नज़रें चुरा लेना,
सब बातें हैं मन में दबी हुईं ...

किसी के जाने से ज़्यादा सताता है किसी के पास कुछ रह जाना !
एक बार तो मैं मान लेता हूं,
ज़िंदगी निभ जाएगी उस सब के बिना जो रह गया !
फिर सोचता हूं,
क्या ज़िंदगी निभ जाएगी उस सब के बिना जो रह गया ?

कुछ रहा सहा, मगर, है, थोड़ा सा, अभी भी !!

अर्ज़ी

इक अर्ज़ी जो बन बैठती है आखों में,
हर सुबह ख्वाबों के धुआं होते ही,
वो एक एक शब्द जाया होती है,
दिन की घड़ीओं के साथ साथ !
अर्ज़ी में दरखास्त है, फसाना है, ज़ख़्म नहीं !
अर्ज़ी में सकूँ है, जनून नहीं !


अर्ज़ी में तुम्हारा नाम नहीं !!

झरोखे

ये झरोखा झँकता है मेरी आखों में,
तुम्हारी रुखसती की याद के साथ !
जहाँ से तुम खड़ी हो के दुनिया निहारती थी,
उसमे अब दूर फलक तक नहीं दिखता,
अब बस तुम्हारी यादों का आईना सा बन गया है वहां !
ये झरोखा झँकता है मेरी आखों में,
तुम्हारी आमद के सवाल के साथ !
उसकी चोगाठ पर निशान तेरे हाथों की मेहंदी के,
इस सावन धूल तो गये,
मगर खुश्बू नहीं गयी !


ये झरोखा झँकता है मेरी आखों में,
सवाल बन के या याद बन के !!

रुखसती

कोई रुखसती के वक़्त रख लेता है सब आंसू,
एक संदूकड़ी में दिल की परछत्ती पर !
समंदर किनारे हर शाम,
लहरों के ज़ोर से तोलता है आँसुओ की शिद्दत !
और फिर संभाल के रख देता है वापिस,
आने वाली कई शामों के लिए !


बोलो, कभी तुमने देखा मेरा कोई आंसू ?

झल्ला

एक एहसास के जो निगाहें तकती हैं मुझे,
वो टोह भी देखती हैं किसी का !
एक नतीजा के तुमने मेरा प्यार खोया,
और अपना प्यार भी ना पाया !

इन सबसे परे वो तेरा मुझे झल्ला कहना !!

खत

कोई बरसों मलहम लगाता रहता है,
लिफाफों में लपेटे उन ज़ख़्मों को,
जो उसने कुछ लम्हों के दायरे में,
बांध दिए थे खत की एक कन्नी से !

और दूसरी कन्नी से झर झर बहता हुआ एक आंसू !!

खुश्बू

के पग पग उम्र लांघ रही है,
क्यारीओं से गुलिस्ताँ की !
ज़िंदगी रोज़ नयी खुश्बू चुराती है,
और सज़ा लेती है अपने गुलदस्ते में !

बहरहाल, गुलदस्ता मुकम्मल है सिवाए तुम्हारी खुश्बू के !!

सितारे

उड़ा दे फूंक से बादल,
और तोड़ के सितारे अपनी चुन्नी से सज़ा दे आसमान में !
आज सावन भीगी रात की नहीं,
यारा, तेरे आंचल की ख्वाहिश बसी है पागल मन में !!

कन्नी

देखो, फिर, हिलोरे खाती ज़िंदगी कट चली,
दुनिया के उपर नीले आसमान में !
और फिर, दौड़ा एक बचपना उसे लूटने,
हाथ में ले के इशक़े का मांझा,
तीखा किया था जो इंतज़ार के कांच से !


फिर, रुख़ बदल लिया ज़िंदगी ने मेरी दौड़ से परे,
कन्नी एक दे दी थी तूने अपनी छूहन की !!

इतेफ़ाक

वो मुंह पे रख लेती है हाथ जब हँसती है,
जैसे डर हो कोई छीन लेगा जो मिला है किस्मत के कोई इतेफ़ाक़ से !
और वो क़ैद कर लेता है वो हँसी ज़हन में उसके ढंकने से पहेले,
जैसे फिर मिलना मुश्किल होगा जो मिला है किस्मत के कोई इतेफ़ाक़ से !!

भटकन

इस बार वैसी तेज़ धार वाली बारिश की बूंदें नहीं थी !
ना ही देर रात तक रोते पत्ते !
ना भीगी हवा के थपेड़े !
ना ही खराशों से भरा आसमान !

यूं उदास कुछ भी नहीं था,
फिर भी उदासी थी !

कहीं, ज़हन में, भटकन के साथ साथ !!

हालात

मैने रोशणीओं को फेंका था खिड़की से बाहर आज,
मगर बाहर का अंधेरा अंदर चला आया !
तन्हा रहने की चाहत हालातों से हार जाती है अक्सर !!

अरसा

मैं रुका रहा एक अरसा कढ़ी धूप में,
के छाँव बैठी रही किसी पेड़ किनारे !
मेरे ही इंतज़ार में !!

हद

गर बढ़ जाऊं हदों से,
तो थाम लेना मुझे !
थोड़ी कम ज़्यादा,
हो जाती है याद भी कभी कभी !!

friendship

याद है हमारी पहली काग़ज़ की कश्ती,
कैसे बारिश के थपेड़ों से जूझती,
धार के उस पार लग ही गयी थी !
और उसी खेल को खेल खेल में,
हमने दे दिया था friendship का नाम !

मोहब्बत को मंज़िलें मिलें ना मिलें,
दोस्ती को रास्ता मिल ही जाता है !!




खुशकिस्मती है, दोस्ती का सिर्फ़ राह होता है, मंज़िलें नहीं !

बैर

मायूसीओं ने कर ली है पैरों से दोस्ती,
थोड़ा दूर था, ओर दूर होता रहा हूं !
किस्मत ने दे दिया है मजबूत कांधा,
नज़दीकीओं का बैर ढोता रहा हूं !
.
.
.
पता नहीं क्यों मैं हर बार खुद को दूर ही पाता हूं,
हसरतों और खवाबों में जो गहरा अंतर है, ना समझो तो ही अच्छा...

शाखाएं

ज़िंदगी के पीपल से रोज़ फुन्टते दिन,
अब शाखाएं बन गयी हैं, उम्र की !
जिनपे पत्ते खड़खड़ाते हैं, यादों के
ऐसी ही शाम जब हवा तेज़ चलती है !!
.
.
.
और कोई नहीं होता आस पास,
यारा, मेरी बाहों में सकूँ रखा है तुम्हारे लिए !

यथार्थ

कल्पना भर है,
के कोई हाथ हो जो जाती हुई कलाई को थाम ले !
यथार्थ बस इतना,
के हाथों की लकीरें रोक लेती हैं हर अनहोनी को !!

फिर से

ऐसी ही किसी भीगी रात में,
किसी अंजान मोड़ पे,
फिर से छोड़ जाना मुझे !
शायद गुम हो के फिर पा जाऊं तुम्हे !!

आदत

दरिया सी रफ़्तार तेरी, समंदर सी गहराई मेरी,
यूं तो जानता हूं दोनो हैं जुदा,
बस आदत सी डालनी बाकी है के तू नहीं मेरी !!

खूबसूरत

किसी की सूरत "खूबसूरत" नहीं होती, ना ही किसी की नीली आंखें,
ना होंठों पे तिन, ना मेहंदी लगाए कोई बाहें !
किसी की शायराना ज़ुबान भी नहीं, ना ही लहराती ज़ूलफें,
ना आंखों के इशारे, ना बचकानी मुस्कुराहटें !
ना डूबते सूरज की लाली, ना ही शाम की तेज़ हवाएं,
ना पंछीओं का शोर, ना समंदर की लहरें !


तुम्हे पता है “खूबसूरत” क्या होता है !
हम दोनो का साथ साथ खड़े होना,
एक पत्थर पे जिसपे लहरें टकराती रहें देर तलक समां बांधे !!

अंधेरा

झरोखों की कुछ रोशनी और कांच में बंद बहुत सा अंधेरा !
अंधेरे स्याह कमरों में मिलो कभी तुम मुझसे !!

गिनती

धड़कनें गिनना नहीं आता तो माप लेना अपने कदम,
रफ़्तार की मंदी बता देगी धड़कनों की तेज़ी !!

मजबूरी

अपनी नज़र से बांध लेना कुछ पल अगली बार,
आज कल होड़ में रहती हैं, कोई मशरूफियत दिखाने की !
नज़रें चुराना, नज़रें बचाना या नज़रें झुकाना,
बस परिभाषाएं हैं, कोई मजबूरी छिपाने की !!

चेहरा

पता है सबसे बड़ा दुख था एहसास होना,
के तुमने जिस शख्स से प्यार किया था,
वो तो मैं था पर चेहरा किसी ओर का था !

रात की मोहब्बत मैं भी अकसर,
चांद से निभा जाता हूं !!

पहरेदारी

बस यूँ ही ज़िंदगी ने ठानी है मोहब्बत की पहरेदारी की ज़िद्द !

अब

देखो के ज़िंदगी में शिकवा कोई नहीं अब,
मगर सोचो के तुम्हारी यादों में जागने वाला कोई नहीं अब !
बताओ के आओगे भी तो क्या पाओगे अब !!

सूरज

जाने कितने दिन गुज़र गये
सूरज को देखे !
मालूम होता है,
उसे मिल गयी है रिहाईश,
तेरी घटा सी ज़ुल्फों तले !
जब तूने झटक कर ज़ुल्फों को बांध लिया था !


मुझे डर है,
आज रात गर तुम्हारी ज़ूलफें बिखर गयीं,
तो कहीं रात ढल ना जाए, सूरज की आमद से !!

बुनियाद

मोहब्बत का पीपल जो उग आया था खंडहरों में,
उसपे एक कबूतरों के जोड़े ने अपना घर बनाया था !
अब शिकायत करूं तो किस से,
बेरहम सावन की बौछार से या कच्ची दीवार की ईंट से !

या मान लूं के इस मोहब्बत की बुनियाद ही कमज़ोर थी !!


उम्र

वो रोज़ दुआ करता है के उम्र का कोई पड़ाव आए,
जहां मोहब्बत का ना होना लिखा हो !
उम्र का पन्ना खाए जा रही है ये दीमक की तरह,
मगर अभी उसे ओर बहुत कुछ लिखना बाकी है !!

अलग

हम बैठे हों समंदर के किनारे,
मगर उससे भी ज़्यादा हों एक दूसरे के किनारे !
तुम्हारी एक नज़र छू के चली जाए मेरी पलकों से,
जैसे एक लहर वापिस लौट जाए मेरे पैर को छू के !
मगर तुम ना रहना समंदर ही की तरह मुझसे अलग !


गर डुबोना नहीं है मुझे दिल में,
तो लंगर ही डाल लो मेरी बाहों के अपनी रूह में !!

हक़ीकत

जाने कितनी दफे मैने दिल ही दिल में act किया है तुमसे सब लगाई हुई तोड़ने का scene;
पर कभी भी सही से नहीं कर पाया !
मैं दिल ही दिल में नहीं कर पाता, बताओ, कैसे करूंगा हक़ीकत में !!

समझौते

कभी मैने मुंह मोड़ लिया,
तो कभी उसने नज़रों को चुरा लिया !
मंज़िलों के ख्वाब नहीं बचे थे,
तो रातों को रहगुज़र बना दिया !!

पहचान

पता है घर के असली मायने एक बंजारा ही समझ सकता है,
जैसे मोहब्बत की परिभाषाएं रटी रहती हैं तन्हा शायरों को !
कल रात मुझे इक शायर बंजारा मिला, वो ज़िंदगी से निभा रहा था कोई रंजिश,
और पहचानता था उसे दूर से ही !

मालूम पड़ा, ज़िंदगी, घर और मोहब्बत, बस दो चीज़ों का योग भर है !!

धूप का साया

वक़्त ने भी अपने मन में बंजारापन बसाया है,
देखो, सब अरमानों को तदबीर बना दिया !
आज फिर छांव पे धूप का साया है,
देखो, पंछीओं की चहचहाट ने गमों की रात को जला दिया !!

वक़्त की नींद

आज की रात सो गया है वक़्त भी थक के,
खुद ही करवटें लेता है,
और बल पड़ जाते हैं खुद ही में !
लगता है इस रात की सुबह नहीं,
और ढल जाएगी इक ओर सांझ में !

समझ

किसी को जान लेना काफ़ी है मोहब्बत के लिए,
या मोहब्बत काफ़ी है किसी को जान लेने के लिए !
इस समझ से मैं ढोर हूं मगर मोहब्बत समझता हूं,
जैसे रात समझती है रोशनी को, रोशनी से जुदा रह के भी !!

rainbow रंग

मेरी ब्लैक आंड वाइट कविताएं कुछ jealous सी है rainbow रंगो से आज...
के मेरे शब्दों के रंग सिमट गये हैं ग्रे-स्केल की सीढ़िओं पे...
मेरी कल्पना जकड़े हैं दो प्रेमी - इक सफेद काग़ज़ और इक पेन्सिल की नोंक का चारकोल !

सितारों की भीड़

इस भीड़ में मैं हूं पर इनसे अलग नहीं हूं,
मुझे कोई आवाज़ दे दो के मालूम पड़े मैं कहां हूं !
तुझे मिलेंगे सितारे कई रात को, मगर जहां चाँद नहीं मैं वहां हूं !

अधूरी रात

आज का चांद बनाया है मैने एहसासों से...
और उसमे उड़ेली है चांदनी कुछ यादों की...
अंधेरा रंगा है आसमान पे मैने स्याही से...
तारे बिखरा दिए हैं सुलगती सिगरेट की राख से...
उनपे बादलों सी परछाईं है मेरी नींद की...

जाना, रात फिर भी अधूरी है तुम्हारे बिना !

इफ्तारी

ज़िमेदारियां निभाता है, रिश्तों में मानता नहीं !
वो रोज़ा निभाता है, पर इफ्तारी में मानता नहीं !!

खोज

मैं ढूंढता हूं तुम्हे अपने हर ख्वाब में,
और तह लगा के रख देता हूं हर सुबह सब ख्वाब,
डायरी के उस पन्ने के नीचे,
जिसे तुमने उस दिन चुपके से पढ़ लिया था जब मैं सो रहा था !

जिसमे तुमसे पहली मुलाकात का ज़िक्र था !!

भंवर

मुझे लगता है उदासी और मोहब्बत बराबर बंटी है दुनिया में,
कहीं मोहब्बत तो कहीं उतनी ही उदासी,
और कहीं दोनो एक साथ... 



|| भंवर ||
ये भी खुदा ने खूब की,
पानी में डूबतों को तिनका,
और मोहब्बत में डूबतों को क़लम दे गया !


खुशनसीब तो लग गया किनारे,
और मुझे काग़ज़ों के भंवर दे गया !!

अनकहा

के मैं लिखूं, तुम मिटाओ,
और लहरें तरस जाएं अपने हक़ को !
गीली रेत के नीचे आज भी जाने कितना अनकहा छुपा होगा !!

फाऊंटेन पेन

देखो आज फिर बौरा गये हैं,
बादलों के झुर्मुट !
और मैने भर लिए हैं अपने सारे फाऊंटेन पेन,
अब अगले सावन तक भिगोता रहूंगा काग़ज़ों को !!

अलविदा का इंतज़ार

ग़लत होगा गर मैं कहूं के इंतज़ार नहीं किया कभी,
मगर असल मुद्दा है के सालों गुज़र गये, मगर किसी ने अलविदा नहीं कही !

महत्वकांशा

किस्मत की भी अपनी महत्वकांशा रहती है शायद,
मैं जब भी उठता हूं, फिर फिसल जाता हूं किसी के नयनों के घाट पे !

अंजान

अजीब है के खेल खेल में उलझ जाता है बरसों का बुना ताना-बाना !
जैसे किसी अंजान मोड़ पे विछड़े हुए महबूब का मिल जाना !
या ढूंढना नमक की बोरी में गुम हुआ चीनी का एक दाना !!

होश

बेखुदी का एहसास दे के बोलती हो,
के ये रही सही ज़िंदगी जी लेना होश में !
जाना, समझो, अब या तो होश है या ज़िंदगी है !!

चाशनी

मेरी उंगलिओं पे चाशनी लगी है,
जब से गुज़री हैं,
जलेबी जैसे तुम्हारी ज़ुल्फो के सिरों से !


ज़िंदगी में मीठास की कमी लगे तो,
थोड़ी ले जाना मुझसे !
यारा, सब तुम्हारी ही उधारी है !!

रूखी सी

मैं जानती हूं के तुमने रखी हैं
अपनी मीठी मीठी बातें किसी और के लिए !
और मेरे हिस्से बची है बे-रूखी सारी !

जानते हो बरसों के भूखे के लिए क्या होता है,
रूखी सुखी रोटी का इक निवाला !!

पहल

जानती हो जब बच्चे थे,
और गेंद सड़क के बीच चली जाती थी,
आस लगाते थे कोई मदद करेगा !
अब मुठियां भीच के,
कनखिओं से देखते डरा करते हैं,
कौन पहल करेगा !!

वादे

शक्कर के दो दाने हैं,
जो तेरे हाथ में थे !
इलायची का दाना भी है,
जो मेरे हाथ में था !
और महीन सा अदरक का तीखा,
जो उधार लिया था समंदर के किनारे रेत से !
पर इसमे तुम्हारी आखों के किए वादे नहीं हैं,
जो चाय मैं पी गया पहली बारिश की गीली मिट्टी की खुश्बू के साथ !!


शायद वो वादे विस्की के प्याले में मिल जाएं, किसी ओर शाम !!

करवटें

जिसको सड़क पार जाने के लिए भी ज़रूरत होती थी,
हाथ में किसी का हाथ थामने की !
देखो आज चली जा रही है ज़िंदगी के उस पार,
हाथ में अपनी रातों की करवटें लिए !!

तुम हो

मेरे रंज़ सब देखते हैं, और, मुस्कुराहटें कोई नहीं !
गम सब दे जाते हैं, पर, राहतें कोई नहीं !
बस तुम हो जो मुझे जानते हो और कोई नहीं !!
मैं भी नहीं !!

पत्ते

तुम छूट गयी थी पीछे,
मैं बिना ज़िंदगी के ही आगे बढ़ा हूं !
रेत से बना हूं,
रेत में मिलने को कफ़न ओढ़े पड़ा हूं !
यहाँ सब जानते हैं मुझे,
इसी लिए चेहरे से मुखौटा उतार लड़ा हूं !
फूल बहुत हैं यहाँ पे पहेले से,
मैं शहतीरों के झुर्मुट में पत्ते लिए खड़ा हूं !!

शरारती

अब निगाहें चुरा लेते हैं, जब देखते हैं !
शायद मेरी निगाहों के लाड ही ने शरारती बना दिया होगा !!

संघर्ष

तुम निगाहों के उठने से परेशान,
तो मैं पलकों के झुकने से हैरान !
मोहब्बत इसी संघर्ष की पैदाईश है शायद !!

ख्याल

तुम्हारे ख्याल नहीं आते अब !
जो सामने, बहुत नज़दीक हो, उसका ख्याल आए भी तो कैसे भला !
तुम मेरे साथ हो हमेशा, जैसे मैं खुद के !!

गुम

वो रोज़ नया दर्द ढूंढ लेता है,
जैसे पुराना दर्द बँट गया हो उससे !
मैं उस दर्द-मंद को मिल ही जाता हूं,
जैसे कोई कांधा गुम गया हो उससे !!

चमक

ज़ंग लगी अपनी आखों से देखो,
क्या सब वही है,
या कुछ ओर है,
या फिर सब वही, मगर ज़ंग लगा हुआ !
मोहब्बत थोड़ा ओर घिस रहा हूं, अब वो चमक नहीं रही इसमे !!

पहली मोहब्बत

'पहली मोहब्बत' नाम की कोई चीज़ नहीं होती !
पहला बस वाक़्या होता है,
जो मोहब्बत सिखा जाता है !
और ये सीख रह जाती है ज़िंदगी भर साथ !!

भीगे होंठ

लहू टपकेगा तो खंजर भी तो भीगेगा !
और इक तुम हो, जो सूखे होंठों से अलविदा कह गये !
आओ, और इक बार फिर भोंक दो अपने होंठ मेरी पलकों में,
और ले जाओ कतल की निशानी !!

झोंके

सुनो ना,
अपनी तस्वीर में रख लो मेरा भी कुछ अक्स !
तुम्हारी तन्हाई का सबब भी हूं, अंजाम भी !!
 --

संवारना मत अपनी ज़ूलफें, जब मिलने आओ मुझसे,
मेरी अठखेलिओं के लिए वही शबनम भरी शाम ले आना !
--

झोंके

कितनी रातें हैं जो अंधेरों से रूबरू नहीं होतीं,
टेबल लैंप जला रहता है अध-बुने ख्यालों का टोला पेन की नोंक पे लिए...
 --

जॅंचता ही नहीं मेरे अल्फाज़ों को कोई ओर,
कलम डूबी है तेरी बड़ी बड़ी आखों के नीले समंदर में जब से !
--

कितना अधूरा बनूँ के तुम्हे मुझे पूरा करने की हो चाहत...
--

घर

हम दीवारें बनाते तो हैं,
सकूँ से ज़िंदगी निभाने के लिए !
मगर घर रह जाता है इक पड़ाव भर सा,
रोज़ की रहगुज़र के बाद इक ठिकाने के लिए !
और रह जाते हैं क़ैद हो के,
हालातों की दीवारों में इक उम्र सहने के लिए !
ज़माने को इक ज़िंदगी दिखाने के लिए !
ज़माने से इक ज़िंदगी छुपाने के लिए !!

अश्क

इशरत-ए-अश्क है आंख से बह जाना,
कभी छुप जाना तो कभी सब कह जाना !

बाँटना

रोते हूओं के सरों का बोझ उठाते,
थक गये हैं उसके काँधे !
गाँठ टिकी नहीं देर तक,
यूँ रिश्ते तो कई बार बाँधे !
वो अब मुंतज़ीर है उन बाजुओं का,
जो बोझ हटा के रख दें थोड़ी खुशी !

या फिर बोझ बाँट देने को मिल जाएँ चार काँधे !!

बाकी

सांस लूं के ना, ज़िंदगी बाकी है क्या ?
क्या लिखूं, कुछ एहसास बाकी है क्या ?

दुपट्टा फिर लहरा गया रुख़ पे, रिश्ता बाकी है क्या ?
तूने फिर नज़रें फेर लीं, मलाल बाकी है क्या ?

मौका

मेरी हंसी से फूटे चंद राज़ सुन जाना,
रुकी हुई घड़ीओं का अफ़साना मालूम होगा !
कभी छुपा के सब दर्द, थोड़ा मुस्कुरा भी जाना,
मेरे जीने का बहाना मालूम होगा !
कभी निगाहों से लड़ के कुछ आंसू पी भी जाना,
मेरे हाथ का पैमाना मालूम होगा !


और इक बार आ के मोहब्बत का मौका दे जाना,
अरे, ‘बेपनाह’ का मायना मालूम होगा !!

गुमशुदा नाम

जब ना मिले तुम्हारी ज़िंदगी के किसी कोने में,
पर चाहना हो सुनने की तो ढूंढना,
मेरा नाम शायद गुमशुदा सूची में हो !

होना

ओर तो ओर तन्हाई भी नहीं !
ऐसा नहीं है के तुम हो ही नहीं !
काश !!

अंदाज़ा

गूँथे हुए आटे से सनी उंगलिओं से,
हटा देती है चेहरे से लट, बेदर्दी से !
जैसे हटा दिया था मीत उस माँग से,
जो भरी थी सुरख आंखों के चश्मों से !!

उसे अंदाज़ा ही नहीं, उस ज़ुलफ को कितनी थी चाहत उसके रुखसार से !!

पूरा

मेरी गुमशुदा रातों से पीछे छूट गया था जो,
सुबह की बासी सांसों सा इक ख्वाब,
छोड़ जाता है ज़िद से भी ताज़ा-दम इक अरमान !

आधा मैं, बाकी तुम,
क्या तुम पूरा करोगे मुझे ?

नाम

मैं दूर हूं तो वो भी कहां नज़दीकीओं से जुड़ा है,
वो हर वस्सल के बाद हिजर निभाता तो है !
बेशक वो नहीं करता मुसलसल याद मुझे,
कभी कभी मेरा नाम लिख के मिटाता तो है !!

रूई

रूई के गुबारे से दिखने वाले बादलों को गौर से देखना,
सैलाब दिखेगा तुम्हें !
मेरा खून गरम ना सही, मेरी आखों में ज़िद देखना,
पंजाब दिखेगा तुम्हें !!

मोहताज़

माथे की शिकन में रख ली हैं यादें,
और हाथों की लकीरों में छुपा लिए सब अरमान !
उसका चूमना और तुम्हारे आंसू,
बस मोहताज़ हैं तुम्हारे बदन के !

ओ झल्ली, तुम्हारे प्यार के काबिल कोई तो होगा…

सीप

ज़हीन सी ज़िंदगी में पिरो लिए कितने आंसू,
और पूछती हो ज़िंदगी क्यों आसान नहीं !
जाना, मगर, आसान तो सिर्फ़ मुस्कुराना होता है,
ज़िंदगियाँ बीत जाती हैं उसका सीप ढूंढने में !!

उम्र

दुबला सा लड़का जब हालात से हार मान लेता था,
तो वो लड़की उसे बाहों में ले के समझाती थी,
के कितनी मोहब्बत है उगते हुए सूरज को उससे !
अब उसे याद नहीं आता, उसे हो गयी मोहब्बत कब से,
डूबते हुए सूरज से !
बूझो के विछोड़े की उम्र कितनी लंबी है !!


उगता सूरज आज भी इंतज़ार में, किसी अपने की...
सुबह मगर होती आ रही है बेधड़क !
और लड़की की बाहें भरी रहती हैं मोतिओं से !!

ज़िंदा

आंतक, घुसपैठ, ब्लातकार, भ्रष्टाचार…
क़ौम पे कौन सी झरीट बाकी है !
नस नस में अभी से समा रहा है पानी,
क्या कुछ खून बाकी है?
बादल गरजा है और बिजली चमकी है,
बारिश तो अभी बरसनी बाकी है !

मजबूरी

उससे सुनती थी किस्से, कहानियां और कविताएं,
अब कालिख हुए दिल से स्याही धोया करती है !
कश्ती एक, बाहों के घाट पे किनारे लगती थी,
अब आँसुओं के समंदर में खुद को डुबोया करती है !

एक एक रात वस्सल की जोड़ी थी उसने मिल्कियत,
अब एक एक शब हिजर को खोया करती है !
कोयल ने अंडे तो दे दिए कौए के घोंसले में,
पर रोज़ शाम दूर से उन्हें देख रोया करती है !

दुपट्टे पे सजाती थी वो अरमानों के सितारे,
अब सांझ के ख्यालों से चुन्नी भिगोया करती है !
किताब जो खुद उठ के चिराग जला जाती थी,
आज अपनी ही जिल्द में छुप, तन्हा सोया करती है !

आईनों से उलझाती रही वो चेहरे की चांदनी,
अब झील के पानी में चांद बोया करती है !
कली, रात से निचोड़ लेती थी चाशनी, ग़ज़ल बुनने के लिए,
वो कांटों में शबनम को अब पिरोया करती है !


ये ना कह, यारा, वो है ही नहीं,
वो आज भी तेरे गीतों में समोया करती है !

बंधन

तुम मिलोगी भी, तो यक़ीनन फिर विछुड़ जाओगे !
ये ज़िंदगी फिलहाल इस कशमकश से बंधी है,
कोई मिल गया था, या कोई खो गया है !

आधी अधूरी

रख के हाथ मेरे रुखसार पे,
तुमने दुआ थी के मुझे भी कोई मिलेगा !
यारा, मोहब्बत नहीं तो दुआ ही पूरी की होती,
के अब, कोई मिलता भी है तो मेरा बनता नहीं है !!

लड़ाई

कोई रोता रहे कई लम्हे, मेरा चेहरा अपने आँचल में लिए,
और कह दे के मैं सारी की सारी हूँ तुम्हारी !
हाए, ज़िंदगी मुकम्मल होना भी बड़ा आसान है !!

पर, मालूम नहीं के वो लटें इतनी शरारती हैं,
या मेरी साँसों की लड़ाई है कोई बड़ी बड़ी आखों से !
जो ज़िंदगी उस बेमाने से मोड़ पे आ के रह जाती ही अधूरी !!

संक्षेप

सेंक दे अपने हाथों से इक निवाला,
भूख के लिए !
और इक कतरा रख लेना अपनी आखों में,
प्यास के लिए !

क्या जो मैने कहा, वो तुमने सुना !
देखना कहीं ज़िंदगी छोटी ना रह जाए,
मुलाकात के लिए !!

मुखौटा

मैं ढूंडता हूं हंसी अपनी,
दूसरों के चेहरे में !
और बन जाता हूं वैसा ही,
जैसे के सामने वाले की निगाहें देखती हैं !

सच ये है के,
हंसी एक 'extinct species' हो गयी है !

और मैं रह गया हूँ बन के इक मुखौटा !!

ਵਕ਼ਤ

ਕਿੱਕਰਾਂ ਦੇ ਸੱਕ ਲਭੇ ਸਨ,
ਮੈਂ ਲਾਚਿਆਂ ਮੰਨ ਕੇ ਚੁਗ ਲੇ ਨੇ !
ਉਸ ਕੰਜਰੀ ਬਣ ਬਣ ਔੜ ਹੰਢਾਈਆਂ,
ਹੁਣ ਵਕ਼ਤ ਹੂਰਾਂ ਦੇ ਪੁੱਗ ਲੇ ਨੇ !!

मध्यांतर

ये मध्यांतर है,
यहां कहानी तोड़ देती है अपनी रफ़्तार !
आभास होता है मझधार का !
और अस्तित्व होता है सिर्फ़ इंतज़ार का !!

सांझ

तुमसे मिलूं तो तेरे साथ,
दुनिया से जुदा होने का जी करता है !
तेरी नज़दीकी मिले तो ले के कहीं,
दूर चले जाने का जी करता है !

मैं आ गया दूर मगर, यारा, तुम अधरस्ते कहां छूट गये !
छोड़ गये जो चुन्नी का सिरा मेरे हाथों में,
उसे ओड़ के अब यहीं सो जाने का जी करता है !!


परिंदे चले वापिस मुकामों पे, मुझे वापिसी का रास्ता भी तो नहीं पता...

शाम करारी

मेरी अदरक के स्वाद वाली चाए में,
तू शहद वाली अपनी उंगली घुमा दे !
इतना काफ़ी है इस लम्हे के लिए के शाम पहेले से करारी है !!

बदलाव

तुम्हारी फुलकारी के पक्के रंग,
भी फीके पड़ गये होंगे अब तक !
वक़्त की फुहारों में मरहम हो ना हो,
बदलाव ज़रूर होता है !!

पत्थर

सबको एक पत्थर चाहिए होता है पूजा करने के लिए,
मैने भी रखा है इक पत्थर सीने में,
जिसमे से कटाव होता रहता है दर्द का,
जो एक प्रेम नाम की नदी अपने में बहा ले जाती है,
और घोल देती है सब विछोड़े नाम के समंदर में !


इस समंदर की गहराई नापने जाओगे तो डूब जाओगे, यारा !!

सुबह

लाल हो गये गाल, जो निगाहों की तपिश बिखरी रुख़ के आंगन में,
और तेरी ठंडी सांस का संदेशा मिल गया होठों को !
चुभन दे गयीं माथे की लकीरों में,
तेरी उंगलियाँ, नुकीली, मेरे कजरे से भी ज़्यादा !!

सवाल

गर ऐसा हुआ होता के मैं कहता तुमसे प्यार है और तुम कोई सवाल ना पूछते,
ज़िंदगी बहुत आसान हो सकती थी !
मगर सवाल ना पूछने से जवाबों की कमी पूरी नहीं हो जाती !
तुम मुझे चाहोगे भी तो ये सबूत कौन देगा के चाहते रहोगे... हमेशा !!

लागी

जो जले तो कौन बुझावे,
जली जब राख बने तो फिर कौन जलावे !
इस लागी को कौन छुड़ावे,
कोई खुद छोड़ जाए तो फिर कौन बुलावे !!

आयाम

मेरे पैर छज्जे के सिरे पे,
हाथ काँच के एक ग्लास पे,
आसमाँ छूता हुआ ज़मीन को दूर उफक पे,
आधा चांद हावी होता हुआ सूरज की मधम रोशनी पे…


ये एक साधन मात्र है तुम्हे पाने का !
प्रेम रूह का एक आयाम है, तुम्हे नहीं पता था ?

शिकायत

वो शिकायत करता है रोज़ के,
मैं अब रिश्ते नहीं निभाता !
किस्सा यूं है, यारा, के अब मैं,
खुद के साथ भी वक़्त नहीं बिताता !!

खोज

खिड़कीओं से घूँघट जो उठा,
दिन ने रोशनी पाई, रात ने अंधेरा खोया !
मैने तुम्हे पा कर, अपना अस्तित्व खोया,
मुझे ना पा के, तुमने क्या खोया क्या पाया !
बता दो कुछ पाने को गर बचा है बाकी,
अब जो मैने तुम्हे भी खोया ?

मैं कोशिश में हूं,
इस कहानी के अंत को पाने की…
शुरुआत, मैं खो चुका हूं !!

छींटे

जाने कितने स्याह धब्बे पड़े होंगे,
कोरे काग़ज़ों पे, छींटे जो उड़े कतरा कतरा !
मगर ये दिल वैसे का वैसे है !

बताओ डायरी की इस जिल्द से उस जिल्द के दरमियाँ,
क्या पाया तुमने ?

संभवतः

वो जो ढेर सारा प्यार था सब व्यर्थ हो गया,
क्यूं सोचती हो उसके बारे में !

संभवतः उसका व्यर्थ होना ही मायने रखता होगा,
नहीं तो तुम आज उसको सोचती नहीं !!

राह

सही ये है के मोहब्बत का,
उस ओर का छोर नहीं होता !

तुम किस राह से पहुंची वहाँ ?

मिलन

कोई विछड़ता है, तभी तो कोई मिलता है !
रंज मिलता है या इंतज़ार मिलता है !
मोहब्बत में सब कुछ नहीं लुट जाता,
यारा, कुछ ना कुछ तो फिर भी मिलता है !!

भीगी सी स्याही

ऐसा कुछ नहीं जो लिखने के लिए बचा हो,
कुछ लिखूंगा भी तो वही का वही दोहरा जाऊंगा !
अब तो, शायद, लिखता हूं इस लिए,
के किसी को इंतज़ार रहता है,
बहाने का ! भीग जाने को !!


लो आज फिर भीग लो !!

आभास

बड़ी विरानगी सी थी उस मोहब्बत में,
साथ निभा के भी खुद को तन्हा रखे रखा !
उसे गले लगा के, वो उससे ओर भी दूर हो गयी,
और वो पगला, उसकी छूहन को भी संजोए रखा !!

इक तिशनगी सी थी उस दवा में,
मरने के लिए ता-उम्र ज़िंदा रखे रखा !
वो चाहती थी रखना उसको अलहदा दिल के एक कोने में,
और वो पगला, खुद को शराब में डुबोए रखा !!

रंग

होली के रंगो में कहीं छिप गया उसका तिन !
हिज़र का ले लो मज़ा,
ए दोस्त, बरसात के मौसम में अभी देर है !!

घर घर

सूखे पत्तों की खड़-खड़ाहट जो सुनाई देती है,
बताओ, इनमे तुम्हारी हंसी का शौर कौन सा है !
दवाएं रखीं हैं मेज़ के किनारे पे बहुत सी,
दर्द का गला घोंट दे, इनमे वो ज़हर कौन सा है !!

उमरें गुज़र गयीं इन दीवारों के इंतज़ार की,
ता-उम्र साथ निभाना था जिसमे, सपनों का वो महल कौन सा है !
ज़िंदगी हज़ार खेल ले आई है, रोज़ आज़माइश को,
रूह को जो लुत्फ़ दे, इनमे घर घर वाला खेल कौन सा है !!
बताओ, इनमे घर घर वाला वो खेल कौन सा है !!!

happy ending

खुशी से नाता कुछ ऐसे टूटा उसका,
खुशी नहीं, खुशी के बस साधन ढूंढता है वो !
गमों में आपा कुछ ऐसे डूबा उसका,
गमों को साथ बिठा 'happy ending' वाली कहानी कहता है वो !!

अधूरापन

सोचो के एक पगडंडी है,
छोटी सी !
मैं खड़ा हूं इस छोर पे,
तुम दूसरे छोर पे मुंह दूसरी तरफ किए !
सोचो के हम दोनो के बीच क्या है,
इस फ़ासले के सिवा !


सोचो !

सोचो के गर कुछ है भी,
तो सब अधूरा है !!

यकीं

यकीं मानिए मुझे हैरत होती है हर बार जब मेरी कलम से अल्फ़ाज़ निकल के कुछ अर्थपूरन साकार कर पाते हैं| हैरत इस लिए के 30 पतझड़ गुज़रने के बाद भी जिसे प्रेम नहीं मिला वो प्रेम का दर्शन लिखने से नहीं कतराता| शायद विडंबना इसी की परिभाषा है…
बहरहाल बालकनी के उस तरफ बारिश है और इस तरफ मैं प्यासा हूं,
आज कुछ रंगा पानी भी काम आ जाएगा शायद कलम के साथ साथ…

मौसम

तुम्हारा वो तिन बिना टस से मस हुए,
आज भी तुम्हारे काँधे पे मेरा इंतज़ार किया करता है !
अपने उस काँधे से दुपट्टा मत सरकने देना,
तूफ़ानों के मौसम में अभी देर है !!

बिन-मौसम बरसात

तुम निकालो अपनी सूरमे-दानी से घटा,
मैं भी जेबें टटोलता हूं अपनी !
मेरे रुमाल में तुम्हारे हिस्से की बरसात छुपी थी,
आज निचोड़ के ज़रा बिन-मौसम बरसात का लेते हैं मज़ा !!

इंतज़ार

इंतज़ार गर ख़तम हो जाए तो इंतज़ार कहां रहता है,
इंतज़ार की फ़ितरत है बने रहना !

आज की रात बंधी है कच्ची डोरी से,
दुआ करो के पतंग कटे ना !
मैं उड़ना चाहता हूं बेसबब ख्वाबों के बादल के परे,
इंतज़ार के अंधेरे में रात भर !!

माप

मैनें मापा था कई बार वो लम्हा के कितना मुख़्तसर था,
जब तुमने मुझे पहली और आख़िरी बार अपनी बड़ी बड़ी आंखों से चाहा था !
और अब सोचता हूं के बे-कराँ था,
जो मेरी सोच में बस के रह गया है हमेशा के लिए !!

बस अब आके इक बार माथे को चूम देना,
और ख़तम कर देना सब कुछ !
वरना वो लम्हा रह जाएगा इस असीमित खला में,
क़ैद हो के, मेरे अरमानों की तरह !!

सांसें

अभी शामों का कारवां बाकी है काफ़ी...
मेरी ज़िंदगी में गमों का सिलसिला बाकी है काफ़ी...
के सांसें चलती रहें...

किस्सा

काश के मुझे याद करें सब मेरे जाने के बाद ऐसे,
इक था वो, इक थी वो और एक “है” मोहब्बत उनके दरमियां !!
बहरहाल, किस्सा जुटाने में लगे हैं,
ये गुज़रते लम्हे, लेते हैं रात भर दिलों के ब्यान !!

दहलीज

मेरे पांव बांधे रखी है इक सोच, के शायद,
कोई तुम्हे मुझसे भी ज़्यादा मोहब्बत करता है !
तुम्हे भी पता लगेगा के कितनी दर्द-शुदा है,
ज़िंदगी जब खुद-ब-खुद लांघेगी वो दहलीज !!

सवेरा

कुछ दिए सिसकियां भरते हैं
और मान लेते हैं तकदीर अपनी,
बुझी बाती के धुएं को !
कुछ दिए रोते रह जाते हैं
और जलते हैं पूरी रात,
इंतज़ार में रोशनी के !!

सवेरा हो भी तो भला सूरज निकलेगा या नहीं, क्या पता !!

किताब

लाईब्रेरी में बैठी वो धीरे से बोली,
आदमी की पहचान उसकी किताबों से होती है !
कैसे समझाऊं के मेरी गुम हैं सारी किताबें,
मेरी पहचान तो बस कोरे काग़ज़ों से होती है !!

दीवानगी

मुझमें दीवानगी होती तो शायद,
होश वालों की दुनिया में भी कोई किस्सा बन जाता !
अरे, अगर उसमे मुझ जैसा सब्र होता,
तो वो पगला 'कैस' कभी 'मजनू' ना बन पाता !!
 


कभी तो रुक जाओ तुम खुद ही,
के अब मुझमें साहस नहीं बचा...

ख़ुदग़र्ज़ी

तुमसे नज़रें चुराती हूं,
ये सोच, के थोड़ा दर्द कम कर लूं !
थोड़ा सा तो इंतज़ार ओर कर ए ज़िंदगी,
मैं थोड़ी खुशी का इंतज़ाम कर लूं !!

करघा

जैसे किसान बोता है फसल,
अपने खेत में, किसी ओर के लिए !
मैने उलझाया है अपना ताना बना,
अपने ही करघे में, किसी ओर के लिए !

तुमपे मेरा हक़ तो बहुत था,
यारा, पर हक़ जताने का हक़ ना था !!

रास्ता

जब तुम मिलोगी मुझे किसी मोड़ पे,
तब हम अपने अपने ex's को चिढ़ाएँगे,
जो छोड़ गये थे पिछले मोड़ पे हमें,
और फिर पकड़ लेंगे अपनी अपनी राह !

के मोहब्बत कुछ नहीं बस एक बियाबान रास्ता है !
और मंज़िल, कोई नहीं !!

जोंक

और तुम ये भी नहीं समझे के,
कैसे थोड़ी थोड़ी सी जान चली जाती है हर बार तेरे जाने से !
जैसे जोंक चिपक गयी हो मेरी कलम से,
और थोड़ी थोड़ी सी सयाही रिसती है काग़ज़ पे हर बार तेरी याद आने से !!

सर्दी

तू चुरा लेना ख्वाबों से इंदर-धनुशें ऐसे,
के कफ़न भी रंगों संग आ घुले !
तू उड़ाना कहकशां में सितारे ऐसे,
के पिंजरे भी आज़ादी की खातिर संग चले !
तू देना अपनी आमद की खुशी ऐसे
कोई जिस्म पे आंसू भीगी हल्दी मले !
तू ढंक लेना उसे अपने बदन से ऐसे,
जैसे सर्दी में नींद मिल जाए कंबल तले !

संज्ञा

रिश्तेदारों ने मुझे “पत्थर” की संज्ञा दे दी है,
मैं दुपट्टों से बंधे रिश्ते तक तोड़ जाता हूं !
दोस्तों ने मुझे “कीचड़” की संज्ञा दे दी है,
के मैं दिलों पे धब्बे छोड़ जाता हूं !!
दुश्मनों ने मुझे “मिट्टी” की संज्ञा दे दी है,
गिलों को दफ़न कर खुद पे ही कफ़न ओढ़ जाता हूं !!!

आ रहा हूं या जा रहा हूं, पता नहीं,
जिधर दिखती है राह उधर ज़िंदगी मोड़ जाता हूं !
मुझे नहीं पता मैं क्या हूं,
कोई अक्षर मिलता है, मैं बस कहानी जोड़ जाता हूं !!

कश्मीर की बातें

एक दिन तुमको भी तो जेहलम बहा ले जाएगी,
समंदर में मुझसे मिलाने के लिए ,
मैने बोला था तब अंगड़ाई लेते हुए !
उसने अपनी कश्मीरी आवाज़ में पूछा था जब,
क्या “डाअर” नहीं लगता आपको,
इस तरह जेहलम से लड़ाई लेते हुए !

उसके बाद कई बार देखा है मैने,
उसकी बड़ी बड़ी आखों को,
अपनी ही जेहलम से बेवफ़ाई करते हुए !!

चाशनी

जाने कहां अटका रह जाता है एहसास जिसपे मेरा हक़ था,
के दिल की मायूसी रहती है होठों पे हंसी बन के !

और जाने कौन सी छननी से निचोड़ लाते हैं रिश्ते वो,
के किसी का प्यार रहता है गालों पे चाशनी बन के !!

present

“आज कल के ज़माने में हर लड़की का एक past होता है” ये तो सब ने बताया था...
“present भी होता है” ये किसी ने नही बताया…

Stairs


I lived my entire life one step a time. Now when I look back, I have come a long way, up many stairs.

निशाँ

एक-आध सांस रह जाती है पीछे खुश्क गले में आहों के बीच,
लहरें चुराती रहती हैं समय मेरे हाथ से, पैरों पे लगी मिट्टी को जोड़ जोड़ के !
और एक-आध लम्हा रह जाता है पीछे गीली रेत में सीपिओं के बीच,
जिसे मैं जीता रहता हूं बार बार, जीने का मकसद तोड़ तोड़ के !

यारा, जब मैं रेत पे पैरों के निशाँ बना रहा होता हूं,
और समंदर मिटा रहा होता है !!

कहानी

शब्दों की लकीरों के बीच जो खाली सफ़ेद जगह होती है,
मेरी कहानी वहां छुपी अनकही रह जाती है !
कभी जबान जवाब दे जाती है,
तो कभी कलम सवाल बन रह जाती है !

और ज़िन्दगी पलकों किनारे इंतज़ार बन बह जाती है !!

रिश्ता

ऩफा तो दोनों का ही ना हुआ उस सौदे में,
उसे कुछ ब्याज़ बच गया था, और मुझे कुछ असल !

अब लिख बैठे हैं कहानी अपने अपने अंदाज़ से,
उसे कोई गीत मिल गया, और मुझे कोई ग़ज़ल !!

कफ़न

अपने जिस्म की ही कतरनें जोड़ जोड़ जैसे,
सिल रहा हो कफ़न कोई !

वो बाहर से यूं मुस्कुराता है जैसे,
अंदर दफ़न कर लिया हो कोई !!

मेरे जैसा

शिक्स्तें बहुत मिलीं तुझे,
और वैसा ही सब मिला जैसे तूने दी थी !

मोहब्बतें बहुत मिलीं मुझे,
पर वैसा कुछ भी ना मिला जैसे मैंने की थी !!

कांधा

चाहे बतौर-ए-दुआ माँगा था,
अपना सब देके तेरा होने को !!
प्यार हमेशा बड़ी ज़द्द-ओ-ज़हद के बाद मिलते हैं !

मैने बस एक ही कांधा माँगा था,
अपना सर रख के रोने को !
चार तो किस्मत वालों को मिलते हैं !!

गैरत

यारा, आज रो भी दो तो आँखों को कोई हैरत ना होगी
आईना भी कसेगा तंज़ तो पलकों में
कोई गैरत ना होगी !

बजाह

सब वही मेरा अपना,
कांधा, उसके आंसू, वही आहें !
बस दो चीज़ें पराई,
एक वो और एक बजाहें !

रफ़्तार

मैने छोड़ा ना था कभी, बस छूट गयी थी,
रफ़्तार बहुत थी मेरे यार में !
मुझे तो एक ट्रेन हरा गयी थी,
वो जल्दी में थी और मैं प्यार में !!

जन्म

होठों की लपटों में छुपा लो !
जल जाए बदन पर रूह को बचा लो !
सात जन्म नहीं चाहिए,
मेरी एक ही है ज़िंदगी, वो बना दो !!

किस्मत

जो कोई ऐसा मिल जाए जो सब कुछ हार जाए अपना तुमपे,
वो किस्मत होती है !
किस्मत का ना होना है किसी ऐसे का ना मिलना,
ज़िंदगी भर !
कोई ऐसा मिले पर अपना ना बन पाए,
बस बदक़िस्मती होती है !


वो मुझे कह रहा था गयी रात,
मैं सब कुछ पहेले ही हार आया हूं,
बस अपना बना लो मुझे ! थोड़ा सा !!

रिश्ते

इनमे जो बची मोहब्बत ही नहीं,
तो रिश्तों का बोझ क्यों कर सहुं !
तुझसे तो कुछ शिकायत भी नहीं,
तुझे अपना क्यों कर कहूं !!

लम्हे

ये जो लम्हे गुज़र जाएंगे,
तू समेट लिया कर ना !
अरे आशिक़ है तू,
आशिक़ी किया कर ना !!

कलियां

मैने इकठ्ठी की थीं कलियां,
के एक दिन फूल बन खिलेंगे सब !
वो मुरझाई सूखी पड़ी हैं डायरी के पन्नों में,
वस्सल वाले शब्दों के साथ !


मैने लिखना छोड़ दिया था तब से,
के डायरी में हिज़र जैसे शब्द आए जब से !!

दुआ

इक ओर पन्ना किताब-ए-ज़िंदगी से फाड़ रहा हूं,
सब लिखते हैं,
मैं लिखे को मिटाए जा रहा हूं !
इक ख्वाब नींद के बगैर सजा रहा हूं,
सबको मिलती है रात,
मैं दिनों में सोने जा रहा हूं !
इक ओर दुआ, बद्दुआओं के ढेर से समेट रहा हूं,
सब छूट जाता हैं यहीं,
मैं अपना सब उसके पास लिए जा रहा हूं !!


यारा, मोहब्बत को वजूद का हिस्सा मत बनने देना,
जाती है तो ज़िंदगी सीधी गली से चौरस्ता बन जाती है !!